108 parshwanath Bhagwan
मूलनायक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान
आराधना मंत्र :- ॐ ह्रीँ श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम:
तीर्थाधिराज :- श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ,
श्वेत वर्ण, लगभग १८० सें. मी. (६ फ़ुट)
(श्वेताम्बर मन्दिर)
तीर्थ स्थल :- शंखेश्वर गाँव के मध्य्स्थ ।
तीर्थ विशिष्टता :- श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान कि प्रतिमा अति ही प्राचीन व चमत्कारी प्रतिमा है । अषाढी श्रावक द्वारा बनाई गयी तीन प्रभु प्रतिमाओं मॆं से एक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान कि है ।
प्रभु प्रतिमा बहुत प्राचीन है जो लाखों वषों तक देवताऒं द्वारा देवलोको में पुजीत है । कृष्ण और जरासंध युद्ध में जरासंध द्वारा कृष्ण कि सारी सेना पर जरा शक्ति फ़ेंकी गयी । तब भगवान नेमिनाथ प्रभु के कहने पर कृष्ण ने अठम तप कर माता पद्ममावती को प्रसन्न कर उनके पास से श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान कि प्रतिमा प्राप्त कर उसे प्रतिष्ठित कराया और प्रतिमा का न्हवण करा कर न्हवण- जल सारी सेना पर छिडकाया जिसके प्रभाव से उपद्रव शांत हुआ । इस प्रतिमा के दर्शन मात्र से ही सारे कृष्ट दूर हो जाते है ।
2. श्री जीरावला पार्श्वनाथ भगवान
मूलनायक श्री जीरावला पार्श्वनाथ भगवान
आराधना मंत्र : ॐ ह्री श्रीजीरावलापार्श्वनाथाय नम:
तीर्थाधिराज :- श्री जीरावला पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ मुद्रा,
श्वेत वर्ण, लगभग १८ से.मी.
(श्वेताम्बर मन्दिर)
तीर्थ स्थल :- जीरावला गाँव में जयराज पर्वत की ओट में ।
तीर्थ विशिष्टता :- इस तीर्थ की महिमा का शब्दों मे वर्णन करना सम्भव नही है । प्रभु प्रतिमा अति मनमोहक व चमत्कारी है । दर्शन मात्र से ही सारे कृष्ट दूर हो जाते है । यहाँ जीरावला पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर विक्रम सं. ३२६ मे कोडी नगर के सेठ श्री अमरासा ने बनाया था । अमरासा श्रावक को स्वप्न में श्री अधिष्ठायक देव ने जीरापल्ली शहर के बाहर भूगर्भ में गुफ़ा के नीचे स्थित पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा को उसी पहाडी की तलहटी में स्थापित करने को कहा । ऐसा ही स्वप्न वहाँ विराजित जैनाचार्य श्री देवसूरिजी को भी आया था । आचार्य श्री व अमरासा सांकेतिक स्थान पर शोध करने लगे । पुण्य योग से वहीं पर पार्श्वनाथ स्वामीजी की प्रतिमा प्राप्त हुई । स्वप्न के अनुसार वही पर मन्दिर का निर्माण कर प्रभु प्रतिमा की प्रतिष्ठा वि.सं. ३३१ में आचार्य श्री देवसूरिजी के सुहस्ते सम्पन्न हुई ।
श्री जीरावला पार्श्वनाथ भगवान की महिमा का जैन शास्त्रों में जगह जगह पर अत्यन्त वर्णन है । अभी भी जहाँ कहीं भी प्रतिष्ठा आदि शुभ काम होते है तो प्रारंभ में “ऊँ श्री जीरावला पार्श्वनाथाय नमः” पवित्र मंत्राक्षर रुप इस तीर्थाधिराज का स्मरण किया जाता है । इस मन्दिर मे श्री पार्श्वनाथ भगवान के १०८ नाम की प्रतिमाएँ विभिन्न देरियों में स्थापित है । प्रायः हर आचार्य भगवन्त, साधु मुनिराजों ने यहाँ यात्रार्थ पदार्पण किया है । इस तीर्थ के नाम पर जीरापल्लीगछ बना है, जिसका नाम चौरासीगच्छों में आता है । अनेकों आचार्य भगवन्तों ने अपने स्तोत्रों आदि मे इस तीर्थ को महिमा मण्डित किया है ।
यहाँ पर जैनेतर भी खूब आते हैं व प्रभु को दादाजी कहकर पुकारते है । प्रतिवर्ष गेहूँ की फ़सल पाते ही सहकुटुम्ब यहाँ आते है व यहीं भोजन पका कर प्रभु चरणों में चढाकर खुद ग्रहण करते है
3. श्री केशरीया पार्श्वनाथ भगवान
मूलनायक श्री केशरीया पार्श्वनाथ भगवान
आराधना मंत्र : ॐ ह्रीँ श्रीकेशरीयापार्श्वनाथाय नम:
तीर्थाधिराज :- स्वप्नदेव श्री केशरिया पार्श्वनाथ भगवान, अर्द्ध पद्मासनस्थ मुद्रा,
श्याम वर्ण, लगभग १५२ से.मी.
(श्वेताम्बर मन्दिर)
तीर्थ स्थल :- भद्रावती गाँव के निकट विशाल बगीचे के मध्य ।
तीर्थ विशिष्टता :- गत शताब्दी तक प्रतिमा का आधा भाग मिट्टी मे गडा हुआ था जिसे ग्रामीण लोग केशरिया बाबा कहते थे और भक्ति से सिन्दूर चढाया करते थे । वि.सं. १९६६ माघ शुक्ला पंचमी के दिन श्री अन्तरिक्ष तीर्थ के मैनेजर श्री चतुर्भुज भाई ने एक स्वप्न देखा कि वे भांडुक के आसपास के घने जगलों में घूम रहे है । अचानक एक नागदेव का दर्शन होता है व नागदेव एक महान तीर्थ का दर्शन कराते हुए संकेत करते है कि इस भद्रावती नगरी में श्री केशरीया पार्श्वनाथ भगवान का एक बडा तीर्थ है, इसका उद्धार करो । स्वप्न के आधार पर माघ शुक्ला ९ को श्री चतुर्भुज भाई खोज करने निकले । घूमते घूमते उन्हे उसी तीर्थ के दर्शन हुए । उन्होंने सारा वृत्तांत चांदा के श्रीसंघ को सुनाया और संघ ने तुरन्त कार्यवाही करते हुए उक्त तीर्थ को अपने हस्ते लिया । तभी से भक्तगण प्रभु को स्वप्नदेव श्री केशरीया पार्श्वनाथ भगवान कहते है ।
4. श्री स्थंभण पार्श्वनाथ भगवान
मूलनायक श्री स्थंभण पार्श्वनाथ भगवान
आराधना मंत्र : ॐ ह्रीँ श्री स्थंभणपार्श्वनाथाय नम:
तीर्थाधिराज :- श्री स्थम्भन पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ,
नील वर्ण, लगभग २३ सें.मी.
(श्वेताम्बर मन्दिर)
तीर्थ स्थल :- खम्भात के खारवाडा मुहल्ले में ।
तीर्थ विशिष्टता :- इसका प्राचीन नाम त्रंबावती नगरी था । इस प्रभाविक प्रभु प्रतिमा का इतिहास पुराना है । बीसवें तीर्थंकर के काल से लेकर अंतिम तीर्थकर के काल तक यहाँ अनेकों चमत्कारिक घटनाएँ घटी हैं । तत्पश्चात वर्षों तक प्रतिमा लुप्त रही । विक्रम सं. ११११ में नवांगी टीकाकार श्री अभयदेव सूरिजी ने दैविक चेतना पाकर सेडी नदी के तट पर भक्ति भाव पूर्वक जयतिहुअण स्तोत्र की रचना की, जिससे अधिष्ठायक देव प्रसन्न हुए व यह अलौकिक चमत्कारी प्रतिमा वही पर भूगर्भ से अनेकों भक्तगणों के सम्मुख पुनः प्रकट हुई । इसी प्रतिमाजी के न्हवण जल से श्री अभयदेवसूरिजी का देह निरोग हुआ था । कलिकाल सर्वञ श्री हेमचन्द्राचार्य ने विक्रम सं. ११५० में यहीं पर दीक्षा ग्रहण कर शिक्षा प्रारम्भ की थी ।
5. श्री मनमोहन पार्श्वनाथ भगवान
मूलनायक श्री मनमोहन पार्श्वनाथ भगवान
आराधना मंत्र : ॐ ह्रीँ श्रीमनमोहनपार्श्वनाथाय नम:
तीर्थाधिराज :- श्री मनमोहन पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ मुद्रा,
श्वेत वर्ण, लगभग ७८ से.मी.
(श्वेताम्बर मन्दिर)
तीर्थ स्थल :- बाली गाँव के मध्य भाग में ।
तीर्थ विशिष्टता :- प्रभु प्रतिमा अति चमत्कारिक है । श्री अधिष्ठायक देव ने श्री गेमाजी श्रावक को स्वप्न में कहा कि बाली से दो मील दूर बसे सेला गाँव के तालाब में पार्श्वनाथ प्रभु की प्राचीन चमत्कारिक प्रतिमा है । जिसे यहाँ लाकर स्थापित करे । स्वप्न के आधार पर खुदाई का कार्य करवाया गया व संकेतिक स्थान पर यह भव्य प्रतिमा प्रकट हुई । सेला गाँव के श्रावकों की इच्छा थी कि प्रतिमा यही पर प्रतिष्ठित की जाये । आखिर तय हुआ की प्रभु प्रतिमा कि ले जाने वाले बैल जिस तरफ़ चले प्रतिमा वही विराजित होगी । बैलगाडी प्रभु प्रतिमा को लेकर बाली की तरफ़ ही रवाना हुआ । बाली मे भव्य मन्दिर का निर्माण करवा कर प्रभु प्रतिमा की प्रतिष्ठा कराई गयी
6. श्री जॆटींगडा पार्श्वनाथ भगवान
7. श्री शंकलपुरा पार्श्वनाथ भगवान
आराधना मंत्र : ॐ ह्रीँ श्रीशंकलपुरापार्श्वनाथाय नम
8. श्री गंभीरा पार्श्वनाथ भगवान
मूलनायक श्री गंभीरा पार्श्वनाथ भगवान
आराधना मंत्र : ॐ ह्रीँ श्रीगंभीरापार्श्वनाथाय नम:
तीर्थाधिराज :- श्री गंभीरा पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ,
श्वेत वर्ण, लगभग ४५ सें.मी.
(श्वेताम्बर मन्दिर)
तीर्थ स्थल :- गाँभू गावँ के मध्य ।
तीर्थ विशिष्टता :- प्रभु प्रतिमा राजा संप्रतिकाल की मानी जाती है । प्रभु प्रतिमा अति ही शोभनीय है, लगता है जैसे प्रभु साक्षात हँसतें हुए विराजमान हैं ।
विक्रम सं. ८२६ में रचित ’श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र’ को यहीं ताडपत्र पर लिखा गया था । विक्रम सं. १३०५ में ’उपाँग पंचक’ की वृर्तियां यहीं लिखी गई थीं ।